hi
Audio Sex StoryDesi LadkiGaram KahaniHot girlKamuktaहिंदी सेक्स स्टोरीज

टीचर भाभी को सेक्स के अनूठे पाठ- 1

मैरिड भाभी हॉट कहानी में एक खूबसूरत शादीशुदा लड़की अपने पति के साथ अपने जीवन में खुश है, संतुष्ट है सेक्स लाइफ में! फिर भी एक लड़के को देख उसके मन में हलचल हुई.

महिलाओं के लिए सेक्स शारीरिक से ज़्यादा भावनात्मक सुख होता है.
इसलिए जब मैंने अपनी आपबीती लिखने की अनुमति दीप्ति भाभी से मांगी तो उनकी शर्त थी कि मैं ये घटना उनके दृष्टिकोण से बयान करूं.

मित्रो और सहेलियो, मेरा नाम सारांश है. वैसे तो मैं भोपाल का हूँ, लेकिन बीते कुछ सालों से मुंबई में रहकर पढ़ाई कर रहा हूँ.

यह घटना मेरे साथ नवंबर 2019 में तब घटित हुई, जब मैं हमारे नए घर में गृह-प्रवेश की पूजा के लिए भोपाल आया हुआ था.

इस मैरिड भाभी हॉट कहानी की नायिका दीप्ति भाभी हैं, भाभी भोपाल निवासिनी ही हैं.

वे 32 वर्षीय एक खूबसूरत विवाहिता हैं.
नियमित योगा और संयमित दिनचर्या के कारण उनका धूप सा उजला गोरा रंग, हर निहारने वाले की आंखों को शीतलता देता है.

दीप्ति भाभी का कद पांच फुट पांच इंच का है. उनके घने हल्के-भूरे से गेसू लहरा कर कमर को चूमते हैं.
भरे हुए होंठ, खुले गोरे माथे पर छोटी सी बिंदी, गहरी काली आंखें और सलीके से बंधी साड़ी में छिपने की विफल कोशिश करती हुई घाटियों सी कटाव वाली उनकी कमनीय काया. जैसे पहाड़ों पर रास्ते होते हैं, ऐसे बदन की मालकिन हैं दीप्ति भाभी.

कहानी थोड़ी लंबी है लेकिन अंत में आनन्द भी उतना ही आएगा, इस बात का वादा है.
अब जानिए कि क्या कुछ हुआ हमारे साथ उन बारह घंटों में.

आगे की कहानी दीप्ति भाभी के शब्दों में सुनें. आप मुझे अपनी प्रतिक्रिया या संदेश मेरी नीचे लिखी ईमेल आईडी पर भेज सकते हैं.
[email protected]

यह कहानी सुनें.

मेरा नाम दीप्ति है. मैं अपने पति के साथ भोपाल में रहती हूँ. मैंने बी.एड. किया है और तीन साल से घर के पास ही के एक स्कूल में नर्सरी की कक्षा को पढ़ाती हूँ.

रूढ़िवादी परिवार से होने के कारण मेरी शिक्षा पहले गर्ल्स स्कूल और फिर गर्ल्स कॉलेज में हुई.

घर वालों ने कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होते ही मेरी शादी हमारी जाति के ही एक मेहनती लड़के से तय कर दी और बीते चौदह सालों में उनका ये फ़ैसला सही ही साबित हुआ है.
मुझे इस बात का कभी मलाल नहीं रहा कि मेरे पति ही मेरे पहले और आख़िरी प्रेमी थे.

स्कूल में मेरी सहकर्मियों 25 से 40 के उम्र के बीच की होने के कारण उनके संग हंसी मज़ाक तो हो ही जाता था.
जिनकी शादी नहीं हुई थी, उनके बॉयफ्रेंड थे. जिनकी हुई थी, उनके भी रसभरे इतिहास और वर्तमान में पतियों के किस्से गाहे-बगाहे निकल ही जाते थे और सबके मज़ाक का शिकार मैं बन जाती थी.

क्योंकि सबको इस बात पर अचंभा होता था कि खूबसूरत होने के बावजूद मैंने बस मेरी पति के साथ ही दैहिक सुख भोगा है.

ख़ासकर शोभा, जिसकी शादी को अभी एक साल भी नहीं हुआ था, मेरा बहुत मज़ाक उड़ाती थी.
मैं शोभा को कुछ कह नहीं पाती थी क्योंकि एक तो वो बहुत ही प्यारी थी और दूसरी बात ये कि उसकी शादी उसी परिवार में हुई थी, जो हमारे स्कूल के मालिक थे.

शोभा के पति के बहुत सारे व्यापार हैं लेकिन शोभा को स्कूल संभालने में ही दिलचस्पी थी.

शादी से पहले उसका प्रेम एक फ़ौजी से था, जिसके क़िस्से वो मुझे उकसाने के लिए बड़े चाव से आहें भरकर सुनाती थी.
उसके क़िस्से थे तो मजेदार, लेकिन मैं तो अपने जीवन में खुश थी.
शोभा बस मुस्कुरा कर रह जाती.

एक दिन जब मैं स्टाफ रूम में कुछ काम कर रही थी, मुझे लगा जैसे कोई मुझे देख रहा है.
औरतों को इन बातों का आभास हो जाता है.

जब मैंने आंखों की कोर से देखा, तो पाया कि शोभा के ऑफिस के दरवाजे के पास एक सांवला सा अच्छी कद-काठी का जवान लड़का दीवार के सहारे खड़ा है.
वो मुझे लालसा भरी नज़रों से निहार रहा था.

मुझे ध्यान आया कि मेरे गले से पल्ला थोड़ा सरक गया था.
लेकिन इससे पहले कि मैं वो ठीक करती, मैंने गौर किया कि वो एकटक मेरी आंखों पर टकटकी लगाए हुए था.

पता नहीं क्यों, चाहकर भी मैं उसकी नज़रों से नज़र हटा नहीं पाई, मुझे पेट में गुदगुदी सी होने लगी.

इससे पहले कि मैं कुछ कर पाती, शोभा ऑफिस से बाहर आ गयी.
‘चलो.’
शोभा ने उस लड़के को कहा जो अब भी मुझे ही देख रहा था.

शोभा मेरे पास आकर बोली- दीप्ति, मुझे आज शाम की पार्टी की तैयारी करने के लिए जल्दी निकलना है. ऑफिस आप लॉक कर देंगी? प्लीज़!
मैंने बस हां में सिर हिला दिया क्योंकि उस लड़के की नज़रें अब भी मुझ पर ही जमी हुई थीं.

मुझे पहले से ही पता था कि शोभा के परिवार के नए बंगले की शाम को पूजा थी और रात में एक बड़ी सी पार्टी होनी थी.

शोभा ने मुझसे कहा- आप अपने हसबैंड के साथ नौ बजे तक जरूर पहुंच जाइएगा!
मैंने लड़के से नज़रें बचाते हुए जवाब दिया- शोभा, वो हम आते, लेकिन मेरे हसबैंड दिल्ली गए हुए हैं … और वो देर रात को ही लौटेंगे, तो मुझे घर पर ही रहना पड़ेगा.
‘ओह.’ शोभा ने एक पल को सोचा.

फिर वो आगे बोली- लेकिन आप तो आ ही सकती हैं. हमारा घर तो स्टेशन और आपके घर के रास्ते में है. आपके हसबैंड आपको पिक करते हुए चले जाएंगे!
इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, शोभा ने बनावटी गुस्से से कहा- देखिए अब बहाने मत बनाइएगा दीप्ति, अगर आप नहीं आईं, तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूंगी.
मैं थोड़ा सा झेंप गयी.

ये देखकर पीछे खड़ा लड़का धीरे से हंस पड़ा.

‘तुम क्या हंस रहे हो?’
शोभा ने पलटकर डांटा और फिर याद करके मुझसे कहा- ओह, बताना भूल गयी, ये मेरा देवर सारांश है. मुंबई में पढ़ाई कर रहा है, पूजा के लिए ही भोपाल आया है.

सारांश ने धीरे से अपना दांया हाथ हाय करने के लिए हिलाया.
उसकी आंखें अब भी मेरे चेहरे पर ही टिकी थीं. जवाब में मैं बस मुस्कुरा कर रह गयी.

शोभा बाय कहकर बाहर निकल गयी और उसके पीछे-पीछे सारांश भी.
मैंने कनखियों से उसे जाते हुए देखा, तो पाया कि वो अब भी मुझे ही देख रहा था.

मैंने झट से अपनी नज़रें नीचे कर लीं.
लेकिन मुझे पता था कि जब तक मैं आंखों से ओझल नहीं हुई, उसकी नज़र मुझ पर ही थी.
कुछ बात तो थी उसमें, जो मेरे होंठों पर कुछ देर के लिए एक हल्की सी मुस्कान छोड़ गयी.

घर जाकर जब मैंने अपने पति को कॉल करके मेरी दुविधा बताई तो उन्होंने मुझे निश्चिंत कर दिया और मुझे पिक करने की ज़िम्मेदारी भी ले ली.

मैं पार्टी के लिए कपड़ों को लेकर थोड़ी संशय में थी, तो उन्होंने ही उनकी फेवरेट साड़ी पहनने का सुझाव दिया.

ये एक काले रंग की स्टाइलिश शिफॉन की साड़ी थी जो उन्होंने मुझे कुछ साल पहले गिफ्ट की थी.

उन्हें मैंने बताया कि उस साड़ी का मैचिंग ब्लाउज थोड़ा टाइट होगा क्योंकि मेरा साइज़ इस बीच बढ़ गया है, लेकिन वो अड़े रहे.
मैंने जब ट्राई करके फोटो भेजी, तो उनकी आंखें ब्लाउज की बनावट के कारण स्तनों के बीच बनी घाटी से हटी ही नहीं.

पति ने किसी सड़कछाप आशिक़ की तरह कहा- तुम मिलो रात को, फिर मैं ढीला करता हूँ ये ब्लाउज!
मैं पहले तो शर्माकर रह गयी … लेकिन उनके कॉल काटने के बाद ना केवल मैंने वो साड़ी और ब्लाउज पहनी, बल्कि अपनी सबसे सेक्सी, पतली और झीनी पैंटी और मैचिंग ब्रा भी निकाल ली.

वापस आने के बाद उन्हें सरप्राइज़ देने के लिए क्योंकि मुझे पता था मुझे पार्टी से पिक करने के बाद हम दोनों जैसे ही घर में घुसेंगे, वो मुझ पर टूट पड़ेंगे.

अब मुझे अपने पति के लिए सजना था.
मैंने हल्का मेक-अप किया, बालों को बाएं तरफ से लहराकार अपने आधे सीने पर सज़ा दिया, जिससे मेरा बैकलेस ब्लाउज अपने शबाब पर आ जाए.

साड़ी को मैंने थोड़ा नीचे पहना जिससे मेरी गहरी नाभि उफान पर आ जाए.
मैंने स्तनों के बीच की घाटी को आंचल की कैद से थोड़ा स्वतंत्र कर दिया जिससे देखने वाले को प्यास भी लगे लेकिन देखने के बाद और भड़के.

अब मैंने एक कैब बुलाई, खुद को शॉल से ढका और बाहर निकल गयी.
जब तक मैं पार्टी में पहुंची, तब तक पार्टी शुरू हो चुकी थी.

शोभा ने मेरा शॉल ले लिया और थोड़ी देर के लिए मुझे देखती रह गयी.
उसने कहा- आह, अगर मैं मर्द होती तो आपको अभी दबोच लेती.

हम दोनों हंस पड़ी.

उसने मेरा शॉल संभालकर बाकी सहेलियों की शालों के साथ रख दिया और मुझे उनके पास छोड़कर दूसरों की खातिरदारी में लग गयी.

हम सब व्यंजनों का आनन्द लेते हुए शोभा के आलीशान बंगले को निहारने में मशगूल हो गए.

थोड़ी देर में वो अपने देवर सारांश के साथ वापस आई.
वो उसे सबसे परिचित कराने के लिए लाई थी.

सारांश ने सबसे विनम्रता से हाथ मिलाया और आख़िरी में मुझसे भी!
उसकी आंखें मेरी नज़रों से फिसलकर मेरी घाटियों पर भटकी और फिर वापस मेरी आंखों पर आ गयीं.

वो खुद में इतना खोया था कि मेरा हाथ छोड़ना ही भूल गया.
शोभा ने चुटकी ली- सारांश, मुंबई में खूबसूरत लड़कियां नहीं हैं क्या? दीप्ति भाभी का हाथ तो छोड़ो!

शोभा की बात पर सब हंस पड़े.
मैं झेंप गयी … लेकिन सारांश से ज़्यादा नहीं.

वो किसी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था.
इससे पहले कि कोई और मज़ाक करे, पार्टी के डीजे ने म्यूज़िक बदल दिया.

शोभा ने सबको कहा- अपने-अपने पतियों बुला लो, पेपर-डांस खेलेंगे.

पेपर-डांस में एक कपल एक अख़बार के ऊपर डांस करता है और हर एक राउंड के बाद वो अख़बार और मोड़ दिया जाता है, जिससे उन्हें और करीब आकर नाचना होता है.
जो कपल सबसे आख़िरी तक टिकता है, वो जीत जाता है.

मुझे छोड़कर बाकी सभी सहेलियां अपने पति या बॉयफ्रेंड के साथ आयी थीं इसलिए वो उन्हें लेने चली गयीं और पीछे रह गए मैं और सारांश.
हम दोनों दूसरों को देख ज़रूर रहे थे लेकिन आंखों के कोने बीच-बीच में एक दूसरे पर टिक जाती थीं.

सबके अपनी जगह लेने के बाद भी एक अख़बार बचा हुआ था.
शोभा ने मुझे और सारांश को देखा और ना जाने उसे क्या शरारत सूझी कि उसने सारांश को मेरी तरफ देख कर इशारा कर दिया.

सारांश मेरी तरफ मुड़ा और अपना दांया हाथ बढ़ाकर बड़े धीमे से पूछा- भाभी, अगर इजाज़त हो तो!
उसके मुँह से भाभी सुनकर ज़रा सा अजीब लगा क्योंकि उसकी आंखें उस शब्द से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखती थीं.

मैं अभी भी सोच में थी कि शोभा धमक पड़ी और कहा- तुम्हारे पति नहीं हैं यहां, तो कोई डर नहीं है.
सारांश ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा- उनके पति को मुझसे डरने की कोई ज़रूरत भी नहीं है.

पता नहीं, उसकी बात में ऐसा क्या था, मेरा हाथ अपने आप ही उसके हाथ की ओर चला गया.

अखबार छोटा था और हमें ना ही केवल नज़दीक खड़ा होना था, बल्कि धुन पर धीरे-धीरे नाचते हुए अख़बार से बाहर जाने से बचना भी था.
इस जद्दोजहद में ना जाने कब हमारे हाथ एक-दूसरे के कंधे पर चले गए. मेरी आंखें उसकी आंखों की जकड़ से बचने की कोशिश में हर तरफ घूम रही थीं.

अगली धुन पर अख़बार एक बार और मोड़ना पड़ा जिससे जगह और छोटी हो गयी.
मैंने नज़रें बचाकर शोभा को देखा लेकिन वो खुद में ही मशगूल थी.

अगले ही पल मुझे थोड़ी नम उंगलियां मेरी कमर के नग्न भाग में अठखेलियां करती हुई महसूस हुईं.
एक टीस सी उठी मेरे सीने में, मैंने उसकी आंखों में झांका और फिर और कहीं नहीं देख पाई.

उसकी नज़र बिल्कुल सजग और भेदती हुई निडर थी, जैसे वो जो भी कर रहा है, सही कर रहा है. बिल्कुल ऐसे, जैसे मेरे ऊपर उसका अधिकार है.

‘किसने कहा ख्वाब सच नहीं होते?’

सारांश ने अपनी हथेलियों को मेरी कमर से धीरे-धीरे नीचे ले जाकर मेरे कूल्हों पर रोकते हुए कहा.
मेरे अन्दर कुछ पिघलने सा लगा. मन के एक कोने में मुझे मालूम था कि उस पल में मैं अपने पति के साथ दगा कर रही हूँ.

लेकिन कुछ और था जो मुझे उसकी पकड़ में बांधे हुआ था.

तभी संगीत रुका और जैसे मैं एक नींद से जाग गयी.
अनजाने में ही मेरा पैर अख़बार से बाहर चला गया.
सबने हमें खेल से बाहर घोषित कर दिया.

मैं झेंप कर एक कोने के तरफ चल पड़ी.

‘आप ठीक तो हैं दीप्ति भाभी?’ सारांश ने पीछे से आकर पूछा.

मुझे कुछ जवाब सूझ ही नहीं रहा था तो कह दिया- हां-हां, वो बस … वो मुझे टॉयलेट जाना था.

‘आइए, मैं दिखाता हूँ.’ यह कहकर वो अन्दर की तरफ चल पड़ा.
वैसे तो मैंने बहाना बनाया था लेकिन अब मुझे भी उसके पीछे जाना पड़ा.

हॉल वाले टॉयलेट के पास उसके पिता के कुछ दोस्त खड़े थे, तो सारांश ने पहले इधर-उधर देखा.

सारांश ने कुछ सोच कर कहा- आप मेरे कमरे का टॉयलेट यूज़ कर लीजिए, इधर तो हर तरफ मम्मी-पापा के मेहमान हैं.

इससे पहले कि मैं उसकी बात का जवाब देती, वो सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया और मुझे भी उसके पीछे जाना पड़ा क्योंकि अब मैं उसे नहीं कह सकती थी कि मैं झूठ बोल रही थी.

सारांश का कमरा दूसरे माले पर था.

उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला और एक तरफ इशारा करके अपने बिस्तर पर बैठ गया.

जैसे ही मैंने टॉयलेट का दरवाजा बंद किया, बाहर से सारा शोर भी बंद हो गया.
मेरे दिल की धड़कनें मुझे सुनाई देने लगीं. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि सारांश से दूर जाने की कोशिश करते-करते कैसे मैं उसके साथ एक कमरे में अकेले हो गयी.

दोस्तो, मुझे उम्मीद है कि सेक्स कहानी के इस भाग ने आपके अन्दर सेक्स की ज्वाला को भड़का दिया होगा.
अगले भाग में आपको वो मसाला भी मिलेगा जिसके लिए आप इस सेक्स कहानी के पटल पर आते हैं.

मैरिड भाभी हॉट कहानी पर आपके विचारों के लिए आपके मेल का इन्तजार रहेगा.
[email protected]

मैरिड भाभी हॉट कहानी का अगला भाग:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

please remove ad blocker