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Drishyam, ek chudai ki kahani-3

This story is part of the Drishyam series

हेल्लो दोस्तों, अब आगे की कहानी पढ़िए!

गर्मी का मौसम था, चीलचिलाती धुप थी। अक्सर गुजरात के छोटे कस्बों में दूकानदार दोपहर को १२.३० से चार बजे के बिच में दुकान बंद कर देते हैं और घर जाकर खाना खा कर सो जाते हैं। मैंने अनुभव किया है की अक्सर इन्हीं समय काल में कई विविध रस से परिपूर्ण कहानियां जन्म लेती हैं। शायद इसी समय में कई नवशिशु के अवतरण के बीज भी बोये जाते होंगे।

वैसे ही रश्मिभाई दुकान बंद करने की तैयारी में थे। उस दिन ग्राहकी कुछ ज्यादा तेज थी। रश्मिभाई की भतीजी सिम्मी उनको बुलाने के लिए आ पहुंची थी। चूँकि चाचा को आने में देर हो गयी थी, इस लिए चाची कब से बड़बड़ा रही थी की खाना तैयार था पर चाचा नहीं आये। खाली बैठी सिम्मी ने चाची को कहा, “चाची आप चिंता ना करें। मैं अभी भाग कर जाती हूँ और चाचाजी को ले कर आती हूँ।”

चाची ने चाचा को बुलाने के लिए सिम्मी को भेज दिया। चाचा का घर दूकान से कुछ ५०० मीटर्स की दुरी पर था। जाने में पांच मिनट लगते होंगे।

सिम्मी के बुलाने पर चाचा ने कहा, “तुम जाओ और चाची से कहो की मैं आ रहा हूँ।”

पर सिम्मी वहाँ से नहीं हटी क्यूंकि चाची ने हिदायत दी थी की “चाचा तुम्हें वापस भेज देंगे और दूकान पर और ग्राहकों के आने पर बैठे रहेंगे। इस लिए तुम चाचा को ले कर ही आना वरना पता नहीं कितना टाइम ले लेंगे तुम्हारे चाचा।“

चाची की झुंझलाहट उनके वक्तव्यों से टपक रही थी। “पता नहीं ग्राहकों को भी जब दोपहर का ब्रेक का समय होता है तभी क्यों खरीदारी पर आना होता है? क्या वह कुछ देर पहले नहीं आ सकते?”

अक्सर दोपहर के खाने के समय ऐसा ही होता रहता था और चाची बेचारी खाना गरम कर के चाचा के इंतजार में बैठी रहती थी।

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उस समय भी ऐसा ही कुछ हुआ। अचानक दूकान पर एक ग्राहक आया और उसने रश्मि भाई को खरीद करने के सामान की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट थमा दी। सिम्मी यह देख कर समझ गयी की चाचा को काफी समय लगने वाला था और अगर ज्यादा देर हुई तो उधर चाची चिल्लाना शुरू कर देगी और चाचा और खुद की भी शामत आ जायेगी।

काफी कीमत की बिक्री का मौक़ा था। चाचा उस ग्राहक को नाराज नहीं करना चाहते थे। रश्मिभाई ने अपने नाक से निचे फिसलते हुए चश्मों को उँगलियोंसे सम्हालते हुए चश्मों के शीशे के ऊपर से टेढ़ी नजर कर ग्राहक की और देखा। चाचा को चाची की दहाड़ का डर भी था और ग्राहक को वापस भेज कर नाराज भी नहीं करना चाहते थे। इशारा कर उन्होने सिम्मी को सामान जुटाने में लगा दिया।

सिम्मी दूकान में अक्सर चाचाजी को मदद करती रहती थी। कॉलेज में होने के कारण सिम्मी हिसाब किताब में अच्छी थी और दूकान का हिसाब किताब कई बार वही देख लेती थी। सिम्मी एक के बाद एक सामान जुटाने में लग गयी।

सिम्मी को गए हुए आधा घंटा होने को आया था पर ना तो सिम्मी और ना ही चाचा के आने के कोई आसार दिखे। तब चाची ने ऊपर के माले में खेल रहे अर्जुन को चिल्ला कर कहा, “अरे अर्जुन जा ज़रा देख तो तुम्हारे चाचा और सिम्मी अब तक क्यों नहीं आये? मैंने सिम्मी को चाचा को बुलाने के लिए भेजा था। उस को गए हुए भी आधा घंटा हो गया। सारा खाना ठंडा हो गया। ना जाने कब मेरी इस रसोई से जान छूटेगी? अरे वह जल्दी आएं और खाना खाएं तब जाकर मैं अपने चुल्हेचौके से निजात पाऊं। पता नहीं मेरी किस्मत में यही गुलामी लिखी हुई है।”

चाची की झुंझलाहट और गुस्से से डरा अर्जुन सीढ़ियां फांदते हुए निचे आया और फटाफट अपनी चप्पल पहनते हुए बोला, “चाची, मैं अभी जाता हूँ और यदि ग्राहक हैं तो पहले चाचा को भेज दूंगा और मैं और सिम्मी ग्राहकों को निपटाकर सारे शटर बंद कर जल्द ही खाने के लिए आ जाएंगे। हमें आने में अगर कुछ देर हो जाए तो आप चाचाजी को खाना खिलाकर खाना ढक कर सो जाना। हम आकर खाना गरम कर खा लेंगे।”

अर्जुन जानता था की चाची हमेशा गरम खाना ही खाना चाहिए ऐसा मजबूत विश्वास रखती थी और बच्चों को हमेंशां गरम खाना ही परोसती थी।

जाते हुए अर्जुन को चाचीजी की आवाज सुनाई दी, “तुम्हारे चाचाजी को ख़ास तौर से कहना की उन्होंने मुझे ख़ास हिदायत दी थी की वह आज गरमा गरम खाना खायेगे। सो मैंने उनके कहने के मुताबिक़ सारी तैयारियां कर रखी हैं और तुम्हारे चाचा हैं की वह खुद ही नदारद हैं। उनको देर हो गयी तो कहना की मैं उन्हें कोई खाना नहीं परोसूँगी और चुपचाप सो जाउंगी।”

चाचीकी गुर्राहट सुन अर्जुन को ऐसा लगा की चाची चाचाजी को कोई ख़ास सन्देश देना चाहती थी। यह क्या हो सकता है यह अर्जुन सोचने लगा।

दूकान पर पहुँचते ही उसने देखा तो दो तीन ग्राहक आए हुए थे और सिम्मी चाचाजी को सामान जुटाने मदद कर रही थी। अर्जुन ने फ़ौरन चाचाजी से कहा, “चाचाजी, अब आप यह सब रहने दीजिये। आप फ़ौरन घर चलिए। चाचीजी घर में चिल्ला रही है की खाना ठंडा हो रहा है। अगर आपने देर की तो आपका तो पता नहीं पर हमारी शामत आ जायेगी। इस लिए मैं सामान जुटा रहा हूँ और सिम्मी सब हिसाब कर पैसे ले लेगी और हम घर आकर आपको सारा हिसाब दे देंगे।”

चाचाजी ने अर्जुन की और देखा और जब अर्जुन ने चाचीजी का आखिरी सन्देश सुनाया तो वह समझ गए की चाची क्या कहना चाह रही थी। चाचाजी ने ही चाचीजी को दोपहर को रंगारंग कार्यक्रम करेंगे यह हिदायत दी थी।

अक्सर चाचाजी को देरी करने के लिए बड़ी डाँट खानी पड़ती थी और उसके कारण उनका चाचीजी के साथ दोपहर का रंगारंग कार्यक्रम भी खटाई में पड़ जाता था। चाचाजी भी रंगीले थे और दोपहर को जब मौक़ा मिले तो चाचीजी की सेवा लेने के लिए तैयार रहते थे। अर्जुन समझ गया था की उस दिन चाचाजी का चाचीजी की लेने का बड़ा मूड था। सो फटाफट सिम्मी को सब समझा कर अपनी धोती को सम्हालते हुए चाचाजी उठ खड़े हुए और ग्राहक लोगों को रामराम करते हुए घर की और निकल पड़े।

जाते जाते बच्चों को हिदायत देते गए, “अर्जुन सिम्मी, आराम से सब काम निपटा कर ही आना। जल्द बाजी में हिसाब किताब में गड़बड़ हो सकती है। सामान अच्छी तरह से जुटा कर सही हिसाब किताब कर, दूकान को भली भाँती बंद कर अच्छी तरह ताला बगैरह लगा कर ही आना। भले ही एकाद घंटा ही क्यों ना लगे।”

अर्जुन समझ गया की उस दिन चाचाजी चाचीजी की अच्छी तरह से बजाने के मूड में थे। शायद यह प्रोग्राम पहले से ही बना हुआ होगा क्यूंकि चाचीजी भी देरी के कारण कुछ ज्यादा ही परेशान दिखती थी। अर्जुन के चाचाजी अर्जुन से मुश्किल से दस बारह साल बड़े होंगे। वह करीब तीस साल के थे।

चाचीजी नंग्न दशा में कितनी खूबसूरत दिखती थी यह तो देखते ही बनता था। अर्जुन और चाचीजी की उम्र में बहुत ज्यादा फर्क नहीं था। फिर भी चाचीजी अर्जुन को बेटे की तरह प्यार करअर्जुन ने अकस्मात् दो तीन बार चोरी छुपी से चाचाजी और चाचीजी को बिस्तर में नंगे गुत्थमगुत्थी करते हुए देख लिया था। हुआ यूँ की एक बार जब अर्जुन के चाचा और चाची दोपहर को चुदाई में लगे हुए थे तब अकस्मात अर्जुन अपने ऊपर वाले कमरे में जा रहा था।

चाचाजी के कमरे में एक रोशनदान था जो ऊपर की और उठा हुआ था। अर्जुन ने जब कुछ आवाज सुनी तो रोशनदान में से चाचाजी को चाचीजी को चोदते हुए देखा तो उसकी हवा निकल गयी। अर्जुन ने चुदाई के बारे में सूना तो कई बार था पर पहली बार उसने औरत और मर्द की चुदाई देखि थी। पहली बार जब अर्जुन ने चचाजी को चाचीजी को नंगी कर कर चोदते हुए देखा तो उसकी हालत खराब हो गयी थी।

अर्जुन मन ही मन में चाचा चाची की चुदाई के बारे में सोचने लगा। चाचाजी और चाचीजी को बिस्तर में नंगे तगड़ी चुदाई के दृश्य उसकी आँखों के सामने दिखने लगे। यह सोच कर की कुछ ही देर में चाचाजी चाचीजी की तगड़ी चुदाई करने वाले हैं, यह सोच कर ही अर्जुन के लण्ड से पानी रिसने लगा था और उसका लण्ड कड़क हो गया। उसकी हालत खराब हो रही थी। उसे फ़टाफ़ट भाग कर चाचा और चाचीजी की चुदाई देखनी थी।

इस चुदाई को ले कर अर्जुन के मन में चाचा और चाचीजी के लिए कभी भी कोई हल्का भाव नहीं हुआ। वह हमेशा चाचीजी को अपनी माँ के जैसे ही समझता था। पर उनको चुदवाते हुए देखना ही उसको लगा जैसे उसके जीवन का सबसे उत्तेजना भरा लम्हा था। उसे देख कर अर्जुन की नस नस में जोर से खून दौड़ने लगा था।

उसके बाद अर्जुन हर दोपहर या रात को मौक़ा ढूंढते ही रहता था। वह अक्सर चाचा और चाचीजी के बैडरूम के इर्दगिर्द घूमता रहता था। अर्जुन को उस दिन लगा की शायद उस दोपहर को उसे यह मौक़ा मिल सकता था। इस लिए वह बड़ा तिलमिला रहा था।

चाचा और चाची की चुदाई ठीक तरह से दिखे इस लिए उसने ख़ास इंतेजामात पहले से ही कर रखे थे। उसने रोशनदान को उतना ही ऊपर उठा कर रखा था की सीढ़ी से चढ़ते या उतरते हुए उस रोशनदान की तिराड़ में से उसे पलंग पर हो रहे हर नज़ारे का अच्छी तरह दीदार हो सके। और उस को सही रखने के लिए उसने पहले से ही कील मार कर और लक्क्ड़ फंसा कर खोल रखा था की जिससे कोई उसे चाहते हुए भी आसानी से बंद ना हो सके।

पर लगता था उसकी सारी मेहनत बेकार जाने वाली थी। ग्राहकों की संख्या देख कर ऐसा नहीं लगता था की एक घंटे से पहले उन्हें कामों से निजात मिलेगी। अर्जुन अपनी तकदीर को कोसता हुआ दुकान में जा कर सिम्मी से सामान की लिस्ट ले कर सामान जुटा ने में लग गया।

दूकान में एक काफी बड़ा बेसमेंट था। उस बेसमेंट में काफी सामान रखा हुआ था। कुछ सामान वहाँ से भी लाना पड़ता था। देखते ही देखते आधा घंटा हो गया। सब ग्राहकों का सामान जुटा कर सारा हिसाब कर सिम्मी और अर्जुन फारिग हुए।

जैसे आखिरी ग्राहक का सामान जुटा दिया गया तब अर्जुन ने सिम्मी से कहा, “सिम्मी, आज मुझे थोड़ा जल्दी वापस घर जाना है। चलो जल्दी लॉक करें और घर चलें। मुझे घर में कुछ जरुरी काम है।”

सिम्मी ने अर्जुन के जल्दी घर जाने की इच्छा देख कर कहा, “ठीक है। मेरा काम अगली पांच सात मिनट में ख़तम हो जाएगा। तुम अगर जल्दी घर जाना चाहते हो तो तुम जाओ। मैं हिसाब फाइनल कर ताला लगा कर आती हूँ।”

सिम्मी की बात सुनकर अर्जुन खुश हुआ और फ़ौरन भागता हुआ घर पहुंचा। वह चुपचाप घर का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुआ तो उसने राहत की सांस ली क्यों की चाचाजी बस खाना खा कर उठे ही थे। चाची फ़टाफ़ट रसोई को संवारने में लगी थी। ऊपर जाने की सीढ़ी ऐसी थी की बिना किसी के जाने ऊपर जाया जा सकता था। सो अर्जुन बिना आवाज किये पहली मंजिल चला गया और चाचा चाची की प्रेमलीला शुरू होने का इंतजार करने लगा।

पढ़ते रहिये कहानी आगे जारी रहेगी!

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