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पड़ोसन बनी दुल्हन-28

This story is part of the Padosan bani dulhan series

मैंने फ़ौरन भाभी का सर अपनी छाती पर लगा कर मेरा एक स्तन भाभी के मुंह में दिया और बोली, “भाभी सा, यह सच है की मैं सेठी साहब के वीर्य से माँ बनना चाहती हूँ। सेठी साहब की पत्नी सुषमाजी को सेठी साहब के वीर्य से बच्चा नहीं हो रहा। सुषमा जी को कैसे भी एक बच्चा चाहिए।

या तो वह मैं सेठी साहब के वीर्य से पैदा कर सुषमाजी को दूंगी या तो वह सुषमाजी खुद पैदा करेंगी मेरे पति राज के वीर्य से। दोनों में से एक तो होगा ही। अगर दो बच्चे होते हैं तो एक बच्चे को मैं रख लुंगी। यही हमारा प्लान है। मैंने सारी बात आपको घड़े में सागर के रूप में संक्षिप्त में बता दी।”

मेरी बात सुन कर भाभी अपने आंसूं रोक नहीं पायी। भाभी आंसू बहाती हुई बोली, “मुझे माफ़ कर देना ननद सा, मैंने आपको गलत समझा। मैंने सुषमा जी का भी फ़ोन पर मजाक उड़ाया। हाय राम, यह मेरे से बड़ा पाप हो गया। मैं सुषमाजी की पीड़ा को समझ सकती हूँ।

मैंने आपको और आपके इस बहुत बड़े बलिदान को छिछोरे रूप में ले लिया। ननद सा, मैं भी इस राह से गुजर चुकी हूँ। मैं भी यह सब भुगत चुकी हूँ। मेरी जिंदगी में भी ऐसा ही एक समय एक झंझावात के रूप में आया था। हमने भी कुछ ऐसा ही कर उसे पार किया है। आप यह सब नहीं जानते। मुझे माफ़ कर देना।”

मैंने भाभी को मेरे स्तनों को चूसने के लिए इंगित किया और बोली, “भाभी, आप दिल छोटा मत कीजिये। मुझे अब आपकी यह छोटी छोटी शरारतें बड़ी ही प्यारी लगने लगीं हैं। आप जैसी हैं वैसी ही रहिये। यह हंसी मजाक ही जिंदगी का अमृत है। पर बाद में मुझे जरूर बताइयेगा की आपके साथ क्या हुआ था।”

भाभी ने मेरे स्तनोँ को बड़ी शिद्दत से चूसते हुए कहा, “ननद सा जरूर बताउंगी। पर अभी तो आपको सेठी साहब से अच्छी तरह रगड़वाना है और माँ भी बनना है।” यह कहते हुए भाभी ने मेरे स्तनों की निप्पलों को अपने दांत में दबा कर जोर से काटना शुरू किया। मेरे मुंह से दबी हुई चीख निकल पड़ी। मैंने कहा, “भाभी सा, यह काम सेठी साहब के लिए ही छोड़ दीजिये ना?”

भाभी ने हँसते हुए कहा, “ननद सा, मैंने कहा न था की सेठी साहब और मैं हम दोनों मिलकर आपको चोदेंगे? अब यह डिपार्टमेंट मेरा है।” यह कह कर भाभी ने मेरे एक निप्पल को और जोर से काटा।

फिर भाभी ने मेरी दो टांगें चौड़ी की और खुद बिच में आ कर जो तेल मैंने भाभी की चूत में और सेठी साहब के लण्ड पर लगाया था वही तेल मेरी चूत में अपनी उंगलियां डालकर लगाने लगी। भाभीने बड़ी उदारता से वह तेल मेरी चूत की सुरंगों में लगाया और मेरी पूरी चूत वह तेल से लबालब चिकनी कर दी। मेरी भाभी की इस तरह मजाक करते हुए भी मेरी चिंता करती देख मेरी आँखें नम हो गयी।

मैंने भाभी को मेरे ऊपर खिंच कर मेरे ऊपर सुला दिया। फिर भाभी के होँठों से अपने होँठ चिपका कर मैंने कहा, “भाभी, आप की जबान पर भले ही कटाक्ष हो पर आपका दिल शीशे की तरह साफ़ है। आप दिल की बड़ी भली और अच्छी औरत हो।”

भाभी ने मेरी आँखों में पानी देखा तो वह भी कुछ इमोशनल हो गयी। भाभी की आँखों में भी नमी आयी, उसे छिपाते हुए भाभी बोली, “ननद सा, मैं आपकी मीठी मीठी बातों में फंस कर सेठी साहब को यह नहीं कहने वाली की आपको ज्यादा सख्ती से ना रगड़े।”

मैंने भाभी का एक हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए कहा, “भाभी सा, सेठी साहब जैसे चोदने वाले हों और आप जैसे देखकर मजे लेने वाले हों तो मैं जिंदगी भर बिना रुके इस लण्ड से रगड़ते हुए चुदवाना पसंद करुँगी।”

भाभी ने मुझे टोकते हुए कहा, “ना रे बाबा, ऐसा मत करना। फिर तो सारी रगड़ाई का मजा आप ही लोगी। अरे दो और औरतें सेठी साहब के इस लण्ड से रगड़ने ले लिए बेताब हैं वह फिर कहाँ जाएंगी? तब मेरा और सुषमा जी का क्या होगा?”

सेठी साहब बाजू में बैठे हम दोनों नारियों की एक दूसरे को छेड़खानी के साथ हो रहा वार्तालाप सुन रहे थे। आखिर में वह बोल ही पड़े, “अरे तुम दोनों महिलाओं ने मिलकर तो सारा स्टेज ही हथिया लिया है। अरे भाई आजकी चुदाई का हीरो तो मैं हूँ। मुझे मेरी टीना को चोदने तो दो अब?”

भाभी ने मुस्कुरा कर सेठी साहब की और देखा और अपना अंगूठा ऊपर कर इशारा किया की वह अब मुझे चोद सकते हैं। भाभी धीरे से मेरी एक तरफ हो गयी और सेठी साहब की जगह खाली कर दी। सेठी साहब मेरी टाँगों के बिच में पहुँच गए और मेरी टाँगें फिर से अपने कन्धों पर रख मुझे चोदने के लिए तैयार हुए। भाभी ने सेठी साहब का खड़ा तगड़ा लण्ड अपनी दोनों हथेलियों में लिया और जैसे उसका वजन कर रही हो वैसे बोलीं, “यह ढाई किलो के लण्ड को मुझे अच्छी तरह से चिकना करना पडेगा, ताकि मेरी ननद सा को चुदवाने में दिक्कत ना हो।”

यह कह कर भाभी ने सेठी साहब के लण्ड को पहले तो जैसे उसके वजन का अंदाज लगा रही हो वैसे अपनी हथेलियों में ऊपर निचे किया और फिर हलके बड़े प्यार से मेरी चूत की पंखुड़ियों को अलग कर के उसके केंद्र स्थान पर रखा और फिर उस तेल से सेठी साहब के लण्ड को जैसे अभिषेक कर रही हो ऐसे उस तेल को अच्छी तरह से पूरी लम्बाई और गोलाई पर खूब उदारता पूर्वक लगाया।

इस बार सेठी साहब को अपना लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने में पहले जितनी मशक्क्त नहीं करनी पड़ी। मेरी भाभी बैठ कर बड़े नजदीक से सेठी साहब का तगड़े घोड़े के जैसे लण्ड को मेरी नाजुक चूत में घुसते हुए देख कर छोटी बच्ची किसी नज़ारे को देख कर तालियां बजा कर हंसती है ऐसे तालियां बजा कर हंसती हुई बोलने लगी, “मेरी ननद सा चुद रही है रे, मेरी ननद सा चुद रही है।”

भाभी की इस बचकाना हरकत देख कर मुझसे मेरी हंसी रोकी नहीं गयी। सेठी साहब से चुदवाते हुए, उनके धक्कों को सहन करते हुए भी मेरे मुंह से हंसी खिल कर फुट पड़ी। सेठी साहब की भाभी की हरकत से अपनी मुस्कुराहट को रोक नहीं सके।

सेठी साहब ने भाभी की और मुड़कर देखा और कहा, “भाभी सा, आप यह कतई ना समझें की आपकी ननद सा को चोदते हुए आपको मैं छोड़ दूंगा।”

यह कहते हुए सेठी साहब ने भाभी को अपनीं और खींचा और भाभी की मदमस्त चूँचियों में से एक की निप्पल को अपने मुंहे में लिया और मुझे चोदते हुए वह उस निप्पल को जोर से चूसने लगे। साथ साथ में वह कभी जोश में आ कर उस निप्पल को काट भी रहे थे। सेठी साहब का एक हाथ मेरे एक स्तन को मसल रहा था जब की उनका दुरा हाथ भाभी की पतली कमर के इर्दगिर्द था। सेठी साहब मुझे चोदते हुए एक साथ दो औरतों के साथ मजे करने का आनंद ले रहे थे।

मेरी तो हालत ही खराब थी। जैसे ही मैंने सेठी साहब का लण्ड मेरी चूत में लिया की मेरी चूत में अजीब सी झनझनाहट फिर से चालु हो गयी। सेठी साहब से मैं पहले दिन चुद चुकी थी। पर पता नहीं सेठी साहब के लण्ड का स्पर्श ही कुछ ऐसा था की मेरी चूत क्या मेरे पुरे बदन में एक तेज आंधी के समान उत्तेजना की लहरें दौड़ने लगतीं थीं।

मैं जितनी मेरी पूरी जिंदगी में मेरे पति के साथ नहीं झड़ी होउंगी उससे कहीं ज्यादा सेठी साहब के लण्ड के दो या तीन स्ट्रोक से झड़ जा रही थी। मेरा झड़ना सेठी साहब शायद महसूस कर रहे होंगे, पर मैं इतनी ज्यादा बार झड़ रही थी की शायद सेठी साहब उसे मेरी आतंरिक प्रक्रिया मान कर उसे झड़ना नहीं मान रहे होंगे क्यूंकि वह फिर भी मुझे अपने तगड़े लण्ड से पेलते ही रहेथे।

मेरी हालत मेरी भाभी और खराब कर रही थी। वह सेठी साहब के लण्ड जहां से मेरी चूत में घुस कर गायब हो जाता था वह सतह पर मेरी चूत की पंखुड़ियों को अपनी उंगली के छोर से बार बार सेहला रही थी, मसल रही थी। मेरी चूत की पंखुड़ियों को मसल मसल कर मुझे में और भी तेज उत्तेजना पैदा कर रही थी।

औरत जब किसी मर्द से चुद रही होती है तो कई बार अपने आपको झड़ने के लिए लण्ड से चुदवाते हुए वह अपनी चूत की पंखुड़ियों को अपनी उँगलियों से मसलती रहती है। ऐसा करने से उसकी चूत को अतिरिक्त रोमांचक उत्तेजना मिलती है। इस प्रक्रिया में उसकी उंगलियां अक्सर लण्ड को भी छू लेती हैं। उसका लण्ड पर भी असर होता होगा। पर चूत पर तो उसका गजब का असर होता है।

मुझे तो अपनी उँगलियाँ नहीं किसी और की उंगलियां छेड़ रहीं थीं। मेरा बार बार झड़ना भला कैसे रुक सकता था? इसी कारण भी सेठी साहब से चुदवाते हुए पता नहीं मैं कितनी बार झड़ती ही रही।

उधर मेरी भाभी सा मुझे बार बार झड़ने के लिए जो भी हथकंडे अपनाने चाहिए वह अपना रही थी। कभी वह मेरी गाँड़ में उंगलियां डालती तो कभी मेरी नाभि को छेड़ती। कभी वह अपने मुंह की लार अपनी उँगलियों में लपेट कर मेरे मुंह में डालती तो कभी मेरे होँठों से अपने होंठ मिलाकर मेरी जीभ को चूसकर जैसे मेरे मुंह की साड़ी लार चूस जानी हो ऐसे कोशिश करती। कभी वह मेरे कानों या नाक को अपनी जीभा से चाटती तो कभी मेरी गाँड़ की दरार में अपनी जीभ डालकर वहाँ चाटती।

मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मेरी भाभी ना सिर्फ अपने मर्द को मजे कराना जानती थी, वह एक औरत को कैसे उत्तेजित करके उसे अपने मर्द से चुदवाने का सबसे ज्यादा मजा कैसे लिया जाए उस कला में निष्णात लगती थी।

इधर सेठी साहब को मेरी टाइट चूत को चोदने में बहुत मजा आ रहा था। वह मेरी और भाभी की छेड़खानी देख रहे थे और उसे देख उनके लण्ड में और भी जोर से उनका वीर्य दौड़ता हो ऐसा लगता था। मेरी चूत को उनका लण्ड अब अच्छी तरह से चोद रहा था। काफी तेल से मेरी चूत भरी हुई होने के कारण सेठी साहब के चोदने से कमरे में “फच्च फच्च” की आवाज गूंज रही थी।

साथ साथ में हमारी जाँघे टकराने से भी “थपाक, थपाक” की आवाज भी साथ दे रही थी। सेठी साहब के अपने लण्ड को मेरी चूत में जोर जोर से पेलने के कारण मेरे सारे संतुलन की ऐसी की तैसी हो जाती थी।

सेठी साहब के पेंडू के तगड़े धक्के के कारण मैं तकिये के ऊपरी छोर पर पहुँच जाती थी। फिर जैसे तैसे मैं वापस तकिये पर सर रखने लगती की दूसरे धक्के में फिर वही बात। मैंने सेठी साहब को चोदने से रोक कर सेठी साहब को अपनी बाँहों में भरने की कोशिश की।

मैं भला सेठी साहब को अपनीं बाँहों में कैसे भर सकती थी? जब सेठी साहब ने यह देखा तो उन्होंने चुदाई रोक कर मुझे अपनी विशाल बाँहों में भर लिया और मेरे पुरे बदन को अपने इतने करीब खींचा की उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस जाए। पर यह तो संभव ही नहीं था क्यूंकि शायद उनके लण्ड के लम्बाई के जितनी मेरी चूत के सुरंग की गहराई नहीं थी।

सेठी साहब मेरे बार बार झड़ने से बड़े ही ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे क्यूंकि उनके लण्ड पर मेरी चूत इतनी जबरदस्त खिंचाव कर रही थी की उनका लण्ड अब उनके नियंत्रण में नहीं रह रहा था। उनके लण्ड में सुनामी की तरह दौड़ रहा वीर्य का फव्वारा अब बाहर आकर मेरी चूत की पूरी सुरंग भर देने और मेरी बच्चेदानी में जा कर मेरे ही बीज को फलीभूत करने के लिए जैसे व्याकुल हो रहा था। उसके ऊपर से भाभी जी की करामात देख कर सेठी साहब बहुत ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे।

तब मैंने सेठी साहब से कहा, “मेरे पति, मेरे प्रियतम, मेरे मालिक, मेरे राजा, मेरे स्वामी, अब मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने के लिए बड़ी ही बेताब हूँ। मेरी इच्छा पूरी करो। मुझे अपने बच्चे की माँ बनाओ। जो आपने मुझे अब तक इतनी शिद्द्त से चोदा है और मैंने आप से बड़े ही प्यार और धीरज से चुदवाया है उसका फल मुझे दो।”

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