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पड़ोसन बनी दुल्हन-45

This story is part of the Padosan bani dulhan series

मेरी बात सुन कर माया चक्कर में पड़ गयी। माया ने कभी सोचा भी नहीं था की जिस घर में वह अपने आप को एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं समझती थी उसी घर में वह बड़ी बहु बन सकती है। वह लाज के मारे हाँ भी नहीं कह सकती थी।

माया मना भी कैसे कर सकती थी, चाहती जो थी वह जेठजी को? माया ने मेरी और देख कर कहा, “दीदी, आप यह क्या कह रहे हो? आप मेरे लिए इतनी बड़ी बात कर रहे हो? आप कहीं मेरा मजाक तो नहीं कर रहे हो? मैं एक छोटे घराने की आपके यहां नौकरी कर रही हूँ और आप मुझे आपकी जेठानी बनने के लिए कह रही हो? आप मुझे बड़ी ही उलझन में डाल रही हो।”

माया यह कहते हुए मेरे पाँव में गिर पड़ी और रोती हुई मेरे पाँव छूने लगी। मैंने माया को उठा कर अपने गले लगाया और उसके आंसूं पोंछते हुए बोली, “माया मैं क्या कहूं? तुम अगर मेरी जेठानी बनोगी तो मेरे लिए यह गर्व की बात होगी। तू बस एक बार हाँ कह दे। बोल, जो मैं कहूँगी क्या तुम करोगी?”

माया ने मुझसे लिपटते हुए कहा, “अंजू जी आप मेरी बहन से कम नहीं हो। जो आप कहोगे मैं करुँगी। बोलो, मुझे क्या करना होगा?”

मैंने कहा, ” तू भी जानती है की मेरे जेठजी बड़े ही जिद्दी हैं। वैसे हम कितनी भी कोशिश करें वह शादी करने के लिए मानेंगे नहीं। अगर तू अभी जायेगी और उन्हें अपना लण्ड हिलाते देख कर पूछना की भैया यह क्या कर रहे हो?

और फिर कुछ ना कुछ तिकड़म कर के जेठजी का लण्ड अपने हाथ में पकड़ लेना और कहना की लाइए मैं इसे हिला देती हूँ। फिर अगर मौक़ा मिले तो उसे चूस भी लेना तुम, ओके?

कोई भी मर्द का लण्ड अगर तेरे जैसी सुन्दर स्त्री पकड़ ले, उसे प्यार से हिलाने लगे और अगर उसे चूसने लगे तो अच्छे से अच्छा मर्द भी बेचारा लाचार हो जाएगा। फिर भले ही वह मेरे जेठजी जैसे सख्त इंसान ही क्यों ना हों? हाँ माया, यह ध्यान रहे की हो सकता है तेरे ऐसे करने से बात आगे बढ़ जाए।

देख माया यह भी हो सकता है की आवेश में आकर जेठजी तुझे पकड़ लें। हो सकता है तुझे जेठजी से चुदवाना भी पड़े। तू तो मेरे जेठजी के लिए जान तक देने की बात कर रही थी। अगर ऐसा कुछ मौक़ा हुआ तो बोल क्या तू मेरे जेठजी से चुदवा सकती है? तू अभी कह रही थी ना हम जवान औरतों को इसके लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए? तो यह सुनहरा मौक़ा है।

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अगर तू अभी चली जायेगी तो कुछ ना कुछ हो सकता है। अगर कुछ हुआ तब हम उन्हें तुम्हारे प्यार के चक्कर में घेर सकते हैं। ऐसा ही कुछ तुझे करना पडेगा तभी यह मामला सुलझ सकता है। फिर हो सकता है वह शायद शादी करने के लिए भी राजी हो जाएँ। अभी वह रोमांटिक मूड में है। तुझे बिकुल घबराना नहीं है। बोल तू यह सब कर सकेगी?”

मेरी बात सुन कर माया घबरा गयी। उसने कभी सोचा भी नहीं था की बात कभी यहां तक आ सकती थी। माया ने उलझन में मेरी और देखा और कुछ झिझकते हुए बोली, “दीदी, मुझसे यह सब कैसे होगा? काम तो मुश्किल है, पर उनके लिए मैं अपनी जान तक दे सकती हूँ।” फिर कुछ शर्माती हुई बोली, “दीदी, सच कहूं? आप मुझे गलत मत समझना। सपने में तो मैं कई बार आपके जेठजी से चुदवा चुकी हूँ। उनके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।”

मैंने माया की और शरारत भरी मुस्कान करते हुए माया की पीठ थपथपाते हुए कहा, “अरे वाह रे मेरी होने वाली जेठानी! अब तक तो तू मेरे जेठजी को बड़े भैया, बड़े भैया कहने से नहीं थकती थी। पर जैसे ही उनसे चुदवाने की बात आयी तो तू मेरे जेठजी को भैया कहने से ही कतराने लगी? ठीक है, तू जा अब और मेरे जेठजी को अपने वश में कर ले। अगर तूने आज रात मेरे जेठजी को अपने वश में कर लिया तो मैं तुझे मेरी जेठानी मान लुंगी।”

मेरे कहने पर माया ने चाय की केतली और कप बगैरह उठाये पर वह तब भी ऊपर सुदर्शन भाई साहब के कमरे की और जाने से हिचकिचा रही थी। मैंने माया को लगभग धक्के मारते हुए ऊपर भैया के कमरे में भेजा और मैं निचे क्या होता है उसका इंतजार करने लगी। बार बार मेरी और देखती हुई घबराती शर्माती माया आखिरकार सुदर्शन भाई साहब के कमरे में जा पहुंची। मुझे इंतजार करते हुए काफी समय बीत गया।

माया का आधा घंटा इंतजार करने के बाद भी जब वह वापस नहीं आयी तो मैं समझ गयी की शायद मेरा तीर निशाने पर लग चुका था। मैं अपने कमरे में जाने के लिए उठ खड़ी हो ही रही थी की मैंने अचानक जेठजी के ऊपर के कमरे में से माया की दबी हुई चीख सुनी। मैं ठिठक कर खड़ी हो गयी।

तब मुझे भरोसा हो गया की माया ने अपने स्त्री चरित्र द्वारा जेठजी को उसकी चुदाई करने के लिए राजी कर लिया था। जेठजी उसी समय माया की चुदाई करना शुरू कर रहे थे। मैं जानती थी की मेरे जेठजी का लण्ड कितना जबरदस्त तगड़ा था।

जेठजी हमेशा सुबह सुबह बाहर पार्क में सैर करने चले जाया करती थे। एक दिन मैं उसी समय यह सोच कर की जेठजी बाहर घूमने गए होंगे, उनके कमरे में कुछ काम के सिलसिले में गयी। मैंने देखा की जेठजी उस दिन सैर करने गए नहीं थे और पलंग पर धोती पहने सोये हुए थे।

अचानक मेरी नजर पड़ी तो मैंने देखा की उनकी धोती इधरउधर हो जाने से उनका लण्ड उनकी धोती के बाहर निकल गया था। मैंने उनके उस महाकाय लण्ड को जब देखा तो मेरे होश उड़ गए। मेरी उस उम्र में भी मैंने कई अच्छेखासे तगड़े लण्ड देखे थे और कुछ लण्डों से चुदवाया भी था।

पर जेठजी का लण्ड जैसे कोई इंसान का नहीं घोड़े का हो ऐसा लंबा और वाकई में बड़े टोपे वाला बहुत ज्यादा मोटा था। हालांकि उस समय वह ढीला शुषुप्त अवस्था में था फिर भी ऐसा महाकाय लग रहा था। कहीं मुझे ऐसे लण्ड से चुदवाना पड़ा तो मेरी तो चूत ही फट जायेगी।

अगर जेठजी ने उस लण्ड से माया को चोदना शुरू किया होगा तो माया की चीख तो निकलनी ही थी। खैर माया को तो उस रात जेठजी के उस लण्ड से चुदना ही था। माया की चीखें और कराहटें सुनते हुए खुश होती हुई मैं अपने बैडरूम की और चल पड़ी। मुझे पक्का भरोसा हो गया की माया की चूत तो उस रात फट कर ही रहेगी।

मैं चुपचाप माया के लिए अपने मन में उपरवाले से प्रार्थना करती हुई अपने बिस्तर में मेरे पतिदेव संजूजी के बगल में जा कर सो गयी। मेरे ख़याल से शायद दो घंटे से तो ज्यादा ही हो गए होंगे जब मैंने अपने बैडरूम के दरवाजे पर हलकी सी दस्तख सुनी।

मैं फ़ौरन चौकन्ना हो कर उठी और माया को देख उसे ले कर बाहर आँगन में आयी। मैं संजूजी को जगाना नहीं चाहती थी। उस समय माया का हाल देख कर मेरे मन में बचाखुचा शक भी गायब हो गया। माया बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी।

यह साफ़ दिख रहा था की मेरे जेठजी ने उस रात माया की इतनी तगड़ी चुदाई की थी जैसी शायद माया ने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं करवाई होगी। मैंने जब माया को गौर से देखा तो माया के गाल पर भी निशान थे। माया बड़ी मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी। माया मुझे देख कर शर्म के मारे लाल लाल हो रही थी। मैं समझ गयी की मेरा तीर बिलकुल निशाने पर लगा था।

मैंने माया का हाथ थाम कर उसे आँगन में एक चौखट पर बैठाया और उसे बड़े प्यार से पूछा, “क्या हुआ माया? तू इतनी शर्मा क्यों रही है? कुछ हुआ जेठजी के साथ?”

माया ने अपनी नजरें जमीन में गाड़े रखते हुए कहा, “अंजुजी, सब कुछ हो गया। यह पूछो की क्या नहीं हुआ।“

मैंने पूछा, “क्या मतलब सब कुछ हो गया? क्या हुआ यह तो बताओ?”

माया ने कहा, “अंजू जी क्या बताऊँ? जो एक मर्द और औरत के बिच जो कुछ भी हो सकता है वह सब कुछ हो गया।”

मैं माया का जवाब सुनकर झुंझला उठी। पर फिर भी संयम रखते हुए पूछा, “माया, मैं समझ सकती हूँ की क्या हुआ होगा। पर अब मुझे विस्तार से बताओ की एक्ज़ेक्टली क्या हुआ? देखो मुझ से शर्म मत करो। हम दो औरतें हैं। तुम्हें मुझसे शर्मा ने की जरुरत नहीं है। साफ़ साफ़ शब्दों में बताओ। मुझे घुमा फिरा के बात करना या सुनना पसंद नहीं है। क्या सुदर्शन भाई साहब ने तुम्हें चोदा?”

माया ने मेरी और अपनी आँखें बड़ी चौड़ी कर कुछ भयावह दृष्टि से देखा और बोली, “अंजू जी आप भी ऐसे बोल रहे हो?”

मैंने माया के कान पकड़ कर बोला, “वाह रे मेरी जेठानी! तू जेठजी से चुदवा कर आ गयी और मैंने चोदना शब्द बोला तो तुझे बुरा लग गया? अरे भोली बहन, चुदाई करना या उसके बारे में बोलना कोई गंदा नहीं होता। जो हम करते हैं उससे मुंह क्या छुपाना? देखो हमारा जनम ही हमारे माँ बाप के चुदाई करने से हुआ है ना? तो उसमें गंदा क्या है? तू मुझे स्पष्ट रूप से बता की क्या हुआ?

मैं और तुम दोनों औरतें हैं। मुझसे शर्म मत कर। देखो मेरे से अगर तूने गोल गोल बात की तो मेरी तेरे से नहीं बनेगी। इस लिए जो हुआ उसे साफ़ साफ़ बता। लण्ड चूत यह मर्द और औरत के अंग हैं। इस का नाम लेने में शर्म काहे की? जब तेरी शादी हुई तब तूने भी तेरे पति से चुदवाया ही था ना? और अब तू अभी अभी जेठजी से चुदवा कर ही आयी है ना? तो फिर मुझसे क्या छुपाना?”

माया मेरी बात सुन कर नजरें निचीं कर के स्तब्ध सी मुझे देखती रही। फिर कुछ हिचकिचाती हुई बोली, “दीदी, आपकी बात तो सही है। मेरे पति भी मुझे यही कहते थे जो आप कह रही हो। आपके जेठजी ने भी इसके लिए मुझे अच्छीखासी नसीहत दे डाली है। कमरे में घुसते ही मुझे आपके जेठजी से बड़ी तगड़ी डाँट पड़ गयी। आप के कहने से मैं आपके जेठजी के पास गयी। और फिर जो आप चाह रहे थे वह हो ही गया।

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