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पड़ोसन बनी दुल्हन-52

This story is part of the Padosan bani dulhan series

माया की बात में दम था। जेठजी दिखने में मेरे पति संजयजी से काफी मिलतेजुलते थे। जेठजी काफी हैंडसम, अक्लमंद, शशक्त, बलशाली और स्वस्थ थे। जो भी बच्चा उनके वीर्य से होगा जाहिर है वह हमारे परिवार के संस्कारों से सिंचित होगा।

वह जेठजी का भी प्यारा होगा। यह सारी बातें अपनी जगह सही थी। पर सवाल यह था की शेर के गले में घंटी बांधे कौन? मतलब जेठजी से कैसे चुदवाया जाए?

मैंने माया का यह प्रश्न फिलहाल टालने के लिए कहा, “चलो ठीक है, देखते हैं। यह होगा, नहीं होगा, कैसे होगा? यह सब बाद में देखेंगे। पहले मैं संजयजी से तो बात करके देखूं। मेरे ख्याल से तो वह इसके लिए कतई भी सहमत नहीं होंगे।

उनके दिल में जेठजी के लिए कितना सम्मान है वह मैं जानती हूँ। वह ऐसा कुछ करके आगे चलके इस बात के कारण हमारे संबंधों में दरार हो ऐसा कभी पसंद नहीं करेंगे।

अब दिक्कत यह भी है की क्या मेरे पति इसके लिए तैयार होंगे? यह भी एक समस्या है। उनसे वह बात कैसे करूँ यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है।”

माया ने अपना सर हिलाते हुए मुझसे सहमति जताते हुए कहा, “दीदी आप की परेशानी मैं समझ सकती हूँ। पर बात तो करनी ही पड़ेगी। यह एक सबसे बढ़िया और मेरे हिसाब से तो सिर्फ एक ही रास्ता है जो आप को सही बच्चे की माँ बना सकता है।

जहां तक आपकी जेठजी को पता लगने की समस्या है उसका इलाज मैंने सोचा है। पर सबसे पहले आप देवरजी से बात कीजिये, फिर उस समस्या को भी सुलझायेंगे।”

मैंने कुछ भी और रास्ता ना सूझने के कारण माया की बात से सहमत होते हुए कहा, “मैं तुम पर भरोसा करती हूँ। मैं तुम्हारे देवरजी से बात करके देखती हूँ। पता नहीं वह मानेंगे या नहीं।”

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माया का सुझाव अमल में लाने की कोशिश करने के अलावा आखिर मैं कर भी क्या सकती थी? ज्यादा सोचने का समय भी तो नहीं था। हर एक दिन हमारे लिए बड़े ही मानसिक दबाव का दिन होता जा रहा था। हमारी हालत ऐसी हो गयी थी की मैं और संजयजी हमारे माता पिता के सामने जाने से भी डरते थे की अगर उन्होंने हमें देख लिया तो वह हमें कहीं बच्चे के बारे में पूछ ना बैठे।

उस रात को जब हम डिनर कर हमारे बैडरूम में सोने गए तब बत्ती बुझाने से पहले मैंने संजयजी से बात छेड़ी। मैंने माया से बच्चे को ले कर हमारी परेशानी के बारे में दो दिन पहले जो बात हुई थी उसके बारे में उन्हें बताया। मेरी बात सुन कर मेरे पति संजयजी ने कोई प्रतिक्रया नहीं दी।

वह मुझे अच्छी तरह से जानते थे। वह जानते थे की माया को मैंने अपनी परेशानी के बारे में बता दिया था वह कोई बड़ी बात नहीं थी। माया के साथ मेरा कितना घनिष्ठ सम्बन्ध था वह भलीभाँति जानते थे।

वह चुपचाप रह कर मेरे सामने देखने लगे। संजयजी समझ गए थे की मैं उनसे कुछ जरुरी बात करने जा रही थी। मैं उनसे जो ख़ास बात कहने वाली थी वह उसका इंतजार कर रहे थे। मैं असमंजस के मारे कुछ बोल नहीं पा रही थी। मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं कैसे उनको कहूं जो माया ने मुझे कहा था।

मेरे पति भी धीरज का समंदर हैं। वह चुपचाप मेरे बोलने का इंतजार कर रहे थे। मैंने झिझकते हुए लड़खड़ाती जुबान मैं कहा, “माया। …. यह कह रही थी की…….. दरअसल माया ने हमारी समस्या जो बच्चे ……. के बारे में कुछ……… हल…… सोचा हुआ है, वह आप…….. को बताने……… के लिए माया ने…….. मुझे कहा है। अब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की जो उसने कहा है वह मैं आपसे वह कैसे कहूं?” कह कर मैं चुप हो गयी।

आगे संजयजी से बात करने की मेरी हिम्मत नहीं थी। संजयजी ने मरे सामने देखा। मेरे पति ने मुझे अपनी बाँहों में लिया और मुझे चूमते हुए कुछ मुस्कुराते हुए बोले, “अंजू, तू मुझे बहुत प्यारी है। मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ।” फिर मेरी नाइटी में अपना हाथ डाल कर मेरे बूब्स को दबा कर सहलाते हुए उन्होंने मुझे पूछा, “मैं अपने अनुमान से बताऊँ की माया ने तुम्हें क्या सुझाव दिया होगा?”

मैंने संजयजी से कहा, “आपको कैसे पता? खैर, बताइये, क्या सुझाव दिया होगा माया ने मुझे?”

मेरी बात सुन कर संजयजी ने मुझे उठा कर अपनी गोद में बिठा दिया। मैं मेरे पति के सख्त लण्ड को मेरी गाँड़ को टोंचते हुए महसूस करने लगी। संजयजी ने मेरी नाइटी के ऊपर के बटनों को खोल कर मुझे ऊपर से नंगा कर दिया। वह कुछ उन्माद के अतिरेक में मेरे स्तनोँ की निप्पलोँ को मुंहमें ले कर चूसने लगे।

मेरी निप्पलेँ भी मेरे पति के इस तरह उत्तेजित हो कर मुझे कामातुर कराने के कारण फूल गयीं थीं। मेरे स्तनोँ के शिखर पर मेरी निप्पलोँ को बिच में रख कर गोलाई में फैली हुई मेरे स्तनों की गोल तश्तरी सी मेरी एरोलाओं के सतह पर मारे उत्तेजना और रोमांच के जगह जगह फुन्सियाँ उठ खड़ी हो गयीं थीं। मैं मेरे पति के इस कदर अचानक इतने उत्साहित हो जाने की वजह समझ नहीं पायी।

पर उस समय मैं अपने पति से कामक्रीड़ा करने से भी कहीं ज्यादा यह सुनने के लिए आतुर थी की मेरे पति क्या समझ गए थे। मैं उनकी और बड़ी उत्सुकता से देखते हुए चुप रह कर उनके जवाब का इंतजार करने लगी।

कुछ भी समय ना गँवाते हुए. मेरे स्तनोँ को बेरहमी से मसलते हुए मेरे पति ने मुझे कहा, “मैं माया से यही उम्मीद कर रहा था। आज मैं समझ रहा हूँ की माया के हमारे जीवन में आने से हमारा जीवन कितना सुखमय और शांतिप्रद हो गया है। एक समझदार औरत के घर में शामिल होने से घर कितना प्रफुल्लित हो सकता है, माया उसकी मिसाल है।

जो माया ने सोचा है वह मैं भी सोच रहा था पर मैं उसे अन्जामि जामा पहना नहीं सकता था जब तक की तुम या माया और ख़ास कर माया उसके लिए राजी हो। यहां तो यह सुझाव स्वयं माया ने ही दिया है। मैं उस सुझाव के लिए माया की जितनी प्रशष्ति करूँ कम है।”

मैं मेरे पति के इस कदर गोल गोल बात करने से चिढ उठी। मैंने अपनी आवाज में अपनी झुंझलाहट को कुछ हद तक कम करने की कोशिश करते हुए कहा, “वह सब तो ठीक है पर आपने यह तो बताया नहीं की आपके हिसाब से माया ने क्या सुझाव दिया होगा? यह तो बताइये?”

मेरी निप्पलोँ को चूमते, चूसते और उत्तेजित हो कर अचानक ही अपने दांतों में चबाते हुए मेरे पति ने कहा, “अरे पगली, मैंने इतने तो तुझे क्लू दे दिए, अब भी नहीं समझी? चल ठीक है, जो मैंने अंदाजा लगाया है वह मैं तुझे बताता हूँ।”

इसके बाद संजयजी ने जो मुझे बताया था लगभग वह सारा का सारा करीब करीब उसी क्रम में मुझे कह सुनाया, जो माया ने मुझे कहा था। मेरे पति की बात सुन कर मैं चौंक गयी। क्या माया ने मुझ से पहले मेरे पति से बात कर ली थी? उन्हें कैसे पता की माया से मेरी क्या बात हुई थी?

मैंने तय किया की दूसरे दिन मैं माया को अच्छे से लताडुंगी। अगर संजयजी को ही बताना था तो फिर मुझसे बात क्यों की और मुझे क्यों कहा की मैं संजयजी से बात कर लूँ? मैं भी फ़ालतू में इतनी ज्यादा परेशान हो रही थी की मैं मेरे पति से इतनी ज्यादा नाजुक बात कैसे करूँ? पर यहां तो माया ने पहले से ही सारा सस्पेंस ख़तम कर दिया था।

संजयजी ने मेरे सर को अपने हाथों में पकड़ा और मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोले, “तुम माया से कुछ भी मत कहना। माया से मेरी इस बारे में कोई भी बात नहीं हुई है। यह सिर्फ और सिर्फ मेरा अनुमान था। अभी तुमने अपनी बातों से कन्फर्म किया की मेरा सोचना सही था।

कल सुबह तुम माया से कहना की मैं उस के सुझाव से पूरी तरह सहमत हूँ। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है। अब आगे उसे जो कार्रवाई करनी है करे।” मेरे पति की बात सुन कर मुझे चक्कर आने लगे। इतनी गंभीर बात जो मैं उनको कहने से इतना डर रही थी, उन्होंने मेरे कहे बगैर ही उसे भाँप लिया और उसे इतना सहज रूप में भी ले लिया और उसका जवाब भी दे दिया?

जब मेरे पति ने भी इस बात की स्वीकृति देदी तब मुझे आसमान में सितारे नजर आने लगे। अगर माया ने जो चुनौती उठाई थी अगर वह पूरी भी कर पाती है तो भी मेरी तो शामत आनी ही थी। माया उसे कैसे पूरी करेगी यह देखना था।

मैंने दूसरे दिन सुबह जब माया को यह बताया की मेरे पति संजयजी ने उसके सुझाव को पूरी तरह ना सिर्फ मंजूरी दे दी थी बल्कि उन्होंने माया की सूझबूझ की उसके कारण भुरभुरी प्रशंशा भी की थी तो माया का चेहरा खिल उठा।

माया ने फ़ौरन मुझे गले लगाया और कहा, “दीदी, मैं कह नहीं सकती की आप ने यह सुबह समाचार दे कर मुझे कितना प्रसन्न किया है। आप सब ने मेरे जीवन को इतना सफल बनाया था की मैं उस एहसान को कैसे कुछ कम कर पाऊं यह मेरे लिए एक बड़ी समस्या थी। अब आपकी गोद में जब बच्चा होगा तो उसे देख कर मुझे लगेगा की मेरा भी इसमें कुछ योगदान था।”

मैंने माया के बदन पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा, “अरे पगली, वह सब तो ठीक है, पर अब तू यह सब करेगी कैसे? जेठजी को पता ना लगे और फिर भी वह मुझे चोदे, यह दोनों बातें एक साथ तो नहीं हो सकती ना?”

मेरी बात सुन कर माया का चेहरा खिल उठा। वह मेरी और मुस्कुराते हुए देख कर मुझ से अलग होते हुए बोली, “दीदी, अब आपने मुझे हरी झंडी दे ही दी है तो अब यह मेरी जिम्मेवारी है की यह मैं कैसे करूँ। अब आप इसकी चिंता मुझ पर छोड़ दीजिये।”

तब माया ने मुझे कहा की वह उसका ऐसा रास्ता निकालेगी की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। माया ने मुझे भरोसा दिलाया की वह ऐसा तरिका निकालेगी की जेठजी को पता ही नहीं चलेगा की संजयजी बाँझ हैं। मेरी समझ में यह नहीं आया की माया ऐसा कैसे कर पाएगी।

पर जब मेरे पति ही इस बात से राजी हो गए तो फिर मैं क्या बोल सकती थी? मेरे दिमाग में यह घुस नहीं रहा था की माया यह सब कैसे कर पाएगी।

मेरी हैरानगी इस बात को लेकर थी की एक पत्नी किसी और औरत को, और ख़ास कर अपनी ही देवरानी को अपने पति से चुदवा कर और उसे अपनी (एक तरह से) सौतन बना कर ऐसे खुश कैसे हो सकती है? यह मेरी समझ से बाहर था।

यह बात तो जाहिर थी की अगर मैं जेठजी से एक बार चुदने के लिए राजी हो गयी और अगर मैंने उनसे एक बार चुदवा लिया तो कहीं ऐसा ना हो की मुझे जेठजी से बार बार चुदवाने का मन करे।

फिर तो बड़ी समस्या हो जायेगी। कहीं मैं सारी मर्यादाओं को तोड़ कर उनके पास बेशर्म बनकर चुदवाने के लिए चली ना जाऊं। फिर तो सारी गोपनीयता भी ख़त्म हो जायेगी। मुझे कोई दुबारा चुदवाने से रोक नहीं पायेगा। उसके बाद तो सारा भांडा ही फुट जाएगा। जेठजी को भी अगर मुझे चोदने का मन हुआ तो कोई उन्हें उस हाल में मुझे दुबारा चोदने से मना नहीं कर पायेगा।

उस हाल में मैं तो मेरे जेठजी की दूसरी बीबी ही बन जाउंगी। पुरे घर में हुड़दंग मच जाएगा। माया को यह बात झेलनी पड़ेगी और अपने पति को मुझ से शेयर करना पड़ेगा। खैर यह माया को सोचने का विषय था, पर यह सब सोच कर मेरा दिमाग खराब हो रहा था।

मैंने माया को पूछा, “माया, क्या तुम्हें पूरा यकीन है की तुम यह सब करना चाहती हो? देखो, मैं कोई सुपर इंसान नहीं हूँ। मानलो की तुम्हारे पति और मेरे जेठजीसे चुदवाने के बाद अगर मुझे उनसे बार बार चुदवाने का मन करेगा और अगर मैं उनसे चुदवाने के लिए इतनी बेबस और बेशर्म हो गयी तो मुझे भी आप लोग उनसे चुदवाने से रोक नहीं पाओगे।

क्यों की एक बार अगर तीर कमान से निकल गया तो फिर तो निकल ही गया, वह वापस कमान में नहीं जा सकता। एक बार अगर लाज शर्म की मर्यादा टूट गयी तो फिर दूसरी बार और तीसरी बार भी टूट सकती है। फिर तो सारा भांडा ही फुट जाएगा अगर ऐसा हुआ तो मैं तो जेठजी की दूसरी बीबी और तुम्हारी सौतन बन जाउंगी। फिर तो मेरे कारण ख़ास तौर से तुम पर तो बड़ा ही जुल्म हो जाएगा।”

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